Sunday, April 30, 2023

Artificial intelligence. Too much Intelligent??

Wednesday, March 9, 2022

शून्य की खोज से पहले....

ये तो आप सभी जानते हैं, कि शून्य की खोज आर्यभट्ट ने की थी।

परंतु, इसी बात से बहुत से लोगों के मन में प्रश्न उठा, कि यदि खोज कलयुग में हुई, तो फिर प्राचीन युगों में जैसे कि सतयुग, त्रेतायुग एवं द्वापरयुग में गणना किस प्रकार होती रही होगी।

जैसे कि रावण के 10 शीश थे, या फिर कौरव 100 थे इसके अलावा श्री कृष्ण की 16000 पत्नियां और बाणासुर के सहस्त्र हाथ का पता कैसे चला?

चलिए तो मैं आपको बताता हूँ, रामायण और महाभारत भारत के प्राचीन महाकाव्य हैं और उस समय संस्कृत भाषा का प्रयोग होता था इन विषयों को लिखे हेतु।

जिस लिपि का प्रयोग उस समय होता था ये तो संभवतः ही कोई पढ़ पाए लेकिन कुछ और तथ्य हैं जिनके आधार पर ये ज्ञात हो सकता है।

उत्तर बहुत सी सामान्य है, लेकिन उससे पूर्व मैं आपको कुछ और बताने का प्रयत्न करता हूँ, जिससे की आप स्वयं ही उत्तर जान जायेंगे |

ब्राह्मी लिपि:-

ये जो चित्र आप देख रहे हैं, ये ब्राह्मी लिपि है, और ये चित्र दर्शाता है कि कैसे संख्याओं का वर्णन किया जाता है इस लिपि में |

चलिए मान लीजिये आप ब्राह्मी लिपि बारे में नहीं जानते कोई बात नहीं, आप इस तस्वीर को देखिये |

Tuesday, March 8, 2022

माँ का पल्लू, बच्चे का संसार


    माँ के पल्लू का सिद्धाँत माँ को गरिमामयी
 छवि प्रदान करने के लिए था.

  इसके साथ ही ... यह गरम बर्तन को 
   चूल्हा से हटाते समय गरम बर्तन को 
      पकड़ने के काम भी आता था.

        पल्लू की बात ही निराली थी.
           पल्लू पर तो बहुत कुछ
              लिखा जा सकता है.

 पल्लू ... बच्चों का पसीना, आँसू पोंछने, 
   गंदे कान, मुँह की सफाई के लिए भी 
          इस्तेमाल किया जाता था.

   माँ इसको अपना हाथ पोंछने के लिए
           तौलिया के रूप में भी
           इस्तेमाल कर लेती थी.

         खाना खाने के बाद 
     पल्लू से  मुँह साफ करने का 
      अपना ही आनंद होता था.

      कभी आँख में दर्द होने पर ...
    माँ अपने पल्लू को गोल बनाकर, 
      फूँक मारकर, गरम करके 
        आँख में लगा देतीं थी,
   दर्द उसी समय गायब हो जाता था.

माँ की गोद में सोने वाले बच्चों के लिए 
   उसकी गोद गद्दा और उसका पल्लू
        चादर का काम करता था.

     जब भी कोई अंजान घर पर आता,
           तो बच्चा उसको 
  माँ के पल्लू की ओट ले कर देखता था.

   जब भी बच्चे को किसी बात पर 
    शर्म आती, वो पल्लू से अपना 
     मुँह ढक कर छुप जाता था.

    जब बच्चों को बाहर जाना होता,
          तब 'माँ का पल्लू' 
   एक मार्गदर्शक का काम करता था.

     जब तक बच्चे ने हाथ में पल्लू 
   थाम रखा होता, तो सारी कायनात
        उसकी मुट्ठी में होती थी.

       जब मौसम ठंडा होता था ...
  माँ उसको अपने चारों ओर लपेट कर 
    ठंड से बचाने की कोशिश करती.
          और, जब बारिश होती तो,
      माँ अपने पल्लू में ढाँक लेती.

  पल्लू --> एप्रन का काम भी करता था.
  माँ इसको हाथ तौलिया के रूप में भी 
           इस्तेमाल कर लेती थी.

 पल्लू का उपयोग पेड़ों से गिरने वाले 
  मीठे जामुन और  सुगंधित फूलों को
     लाने के लिए किया जाता था.

     पल्लू में धान, दान, प्रसाद भी 
       संकलित किया जाता था.

       पल्लू घर में रखे समान से 
 धूल हटाने में भी बहुत सहायक होता था.

      कभी कोई वस्तु खो जाए, तो
    एकदम से पल्लू में गांठ लगाकर 
          निश्चिंत हो जाना ,  कि 
             जल्द मिल जाएगी.

       पल्लू में गाँठ लगा कर माँ 
      एक चलता फिरता बैंक या 
     तिजोरी रखती थी, और अगर
  सब कुछ ठीक रहा, तो कभी-कभी
 उस बैंक से कुछ पैसे भी मिल जाते थे.

       *मुझे नहीं लगता, कि विज्ञान पल्लू का विकल्प ढूँढ पाया है !*

*मां का पल्लू कुछ और नहीं, बल्कि एक जादुई एहसास है !*

स्नेह और संबंध रखने वाले अपनी माँ के इस प्यार और स्नेह को हमेशा महसूस करते हैं, जो कि आज की पीढ़ियों की समझ में आता है कि नहीं........

*महिला दिवस पर सभी माताओं को नमन*
          🌹🙏🏻🙏🙏🌹